रविवार, 1 जनवरी 2012

अब और नहीं...!

मेरी खामोशी को मत समझो,ये मेरी रज़ा होगी,
मेरे लिए तो ये ज़िंदगी भर की सज़ा होगी।

मिलते नहीं एहसास जिनसे,उनसे क्या मिलना,
पत्थर पर कहां मुमकिन है फूल का खिलना।

चाहत की बात पर मुझे मत देना कोई दलील,
चाहूं मैं तुमको, मत करना ऐसी कोई अपील

छोड़ दो एक दूसरे को अब यादों के हवाले
क्यों न अब हम जुदा अपनी राह बना लें।

दिल की इस दिल्लगी को यहीं विराम दे दो
रिश्तों को अपने सिर्फ दोस्ती का नाम दे दो।

मत बनाओ जीवनसाथी, हमें साथी ही रहने दो
यही एक धारा, बस अब अपने बीच बहने दो

चलो हम तोड़ दें, अब मुलाकातों का सिलसिला
याद रखेंगे सिर्फ उसी को जो अब तक है मिला।

हां...मान लो अब तुम कि यही दस्तूर है
ख्वाब हमारा-तुम्हारा हक़ीक़त से दूर है।

अमर आनंद

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

मौन की ताकत

भीड़ के आगे खड़ा वो मौन है,
या खुदा मुझको बता वो कौन है।

जलन है, उत्तेजना है, पीड़ा है,
फिर भी उसने उठाया बीड़ा है।

चल पड़ा है वो शपथ पर,
दौड़ रहा है अग्निपथ पर।

हार को जीत बनाना है,
यही तो उसने ठाना है।

खड़े कुछ लोग संग-संग,
अब तेज होने लगी है जंग।

जारी रखना है ये सिलसिला,
तय करना है ये फासला।

उसको दुआएं दीजिए,
उसकी बलाएं लीजिए।

वो दूर करेगा ‘अंधेरा’,
लाएगा नया ‘सवेरा’।

अमर आनंद

रविवार, 14 अगस्त 2011

जय हो...


सरकार की 'ख्वाहिश' पर अन्ना की ज़ोर आजमाइश देखो।
बेअसर 'सरदार' और टू जी पर 'करूणा' की नुमाइश देखो।

भावनाओं के इस देश में हारती हुईं संभावनाएं।
आज़ाद सोच की 'बेशर्म' कामनाएं।

देश को देखकर मन दर्द से भर जाता है।
आज़ादी के मौके पर फिर भी जय गाता है।

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ

अमर आनंद

रविवार, 10 अप्रैल 2011

अन्ना से सीखो बाबा...


बा रामदेव को लगता है अपनी अहमियत का भ्रम हो गया है। एक तरफ तो वो अन्ना की मुहिम का जंतर-मंतर आकर समर्थन करते हैं, तो दूसरी तरफ अन्ना की नीयत पर ही सवाल खड़े करते हैं। राजनीतिक अनुलोम-विलोम करने को बेताब बाबा रामदेव लगता है बयानबाज़ी की सियासी बीमारी से ग्रसित हो गए हैं। योगगुरु के तौर पर देश-विदेश में ख्यात बाबा को न जाने क्या होता जा रहा है। अन्ना की मुहिम का समर्थन करने आए भी तो चौथे दिन। लगता है बाबा को देर से ये ज्ञान हुआ कि अन्ना का साथ देना चाहिए, जबकि सारा देश अन्ना के साथ खड़ा हो चुका था।

लोकपाल बिल के लिए देश के रग-रग में क्रांति की धारा बहा देने वाले अन्ना हजारे की निस्वार्थ भावना से सभी कायल हैं। गरीब से लेकर अमीर तक अन्ना को लोगों ने समर्थन दिया तो सिर्फ इसी वजह से कि वो देश हित में सबकुछ भूलकर खड़े हुए हैं। सचमुच गांधी, शास्त्री और जय प्रकाश के बाद सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा किया अन्ना और उनके समर्थकों ने। मुमकिन है कि बाबा रामदेव ने इस भीड़ को देखकर ही अन्ना का साथ देने का मन बनाया हो। ये भी मुमकिन है कि बाबा के सियासी जलसों में शायद ही कभी ऐसी स्वत:स्फूर्त भीड़ जमा हो। अन्ना के नेतृत्व को मीडिया ने भी भरपूर स्थान देकर ये दिखा दिया को वो देश हित के साथ हैं।

बाबा को ये ज़रूर सोचना चाहिए कि अन्ना का विरोध कर वो किसका समर्थन कर रहे हैं और किसे कमज़ोर कर रहे हैं। लगता है अन्ना का विरोध कर बाबा देश की नज़र में अपनी मान-मर्यादा ही खो देना चाहते हैं। अन्ना को गुरु मानने वाले बाबा रामदेव को अन्ना को देश और आम लोगों के हित में उनसे कुछ सीख लेनी चाहिए।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

‘वतन की राह' पर दिखा ‘संतोष’ का ‘आनंद’








‘एक प्यार का नगमा है...’ ‘ज़िंदगी की न टूटे लड़ी’, ‘ये गलियां ये चौबारा’ जैसे दिलकश गीतों के लिए मशहूर गीतकार और कवि संतोष आनंद ने दिल्ली के एक कार्यक्रम में समां बांध दिया। दर्शकों के दिलों को छूने वाले इन गीतों को न सिर्फ संतोष ने गाया, बल्कि उनके गीत ज़िंदगी और कुछ भी नहीं... तेरी-मेरी कहानी है...गाकर अपने अनुभवों को याद किया मंच पर उनके साथ मौजूद पवन सिन्हा ने। टीवी चैनलों पर एस्ट्रो अंकल के नाम से मशहूर पवन सिन्हा ने कहा कि संतोष जी के इन गीतों में पूरे जीवन का फलसफा मौजूद है।

दो बार एवरेस्ट की ऊंचाई पर पहुंच चुकीं पद्मश्री संतोष यादव के साथ साथ-साथ देशभक्ति के गीतों के गायक और हरियाणा पुलिस के आईजी शील मधुर भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। शील मधुर के गाए गीत ‘सोने की चिड़िया फिर से अपना भारत कहलाएगा’ के वीडियो अलबम को दर्शकों और खासकर बच्चों ने खूब पसंद किया।

बच्चों में प्रतिभा को निखारने के मकसद से दिव्य दृष्टि सेवा सोसाइटी की ओर से हिंदी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम 22 बच्चों ने गीत और नृत्य के ज़रिये अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। इनमें ऋचा गुप्ता, शैली और हुसैन को पहले, दूसरे और तीसरे पुरस्कार से नवाज़ा गया। टीवी पत्रकार अमर आनंद और रजनी त्यागी ने कार्यक्रम का संचालन किया।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

बेहतरी की करो दुआ


दिल में मुल्क है, और राह में हैं मुश्किलें,
निकल पड़े हैं हम, चाहे फिर दम निकले।

देश मेरा दीन है, देश मेरा है मजहब
देश ही मकसद मेरा, देश जीने का सबब।

देश ही है दिल मेरा, देश ही एक वास्ता ।
देश के लिए है सफर, देश ही एक रास्ता।

राडिया, बरखा, अनंत ‘वीर’ क्यों।
हे ‘प्रभु’...देश की ऐसी तकदीर क्यों।

देश की दौलत पर मचा घमासान है।
सत्ता मेहरबान है, तो राजा पहलवान है।

चौपट राजा, अंधा क़ानून, नेताओं की मनमानी।
दर्द और बर्बादी है, देश की ये कहानी ।

मुकाम दूर, मंज़िल दूर, दिल भी, दिल से दूर हैं।
देश में आम आदमी आज कितना मजबूर है?

जोश नया, जुनून नया, तैयार नया खून है।
गणतंत्र के परचम पर चाहिए सुकून है।

देश ने झेला बहुत, बहुत हुआ, जो हुआ।
जो हुआ, सो हुआ, बेहतरी की करो दुआ।

अमर आनंद

सोमवार, 6 सितंबर 2010

'अंधेरों' के ख़िलाफ़ एक 'कल्पना'


अंधेरों के ख़िलाफ़ रोशनी को लिए
चमकते रहते हैं बदलाव के दीए
बनती है हक़ीक़त,एक ईमानदार'कल्पना'
हलाहल माहौल का जब वो पीए.

हक़ीक़त की सूरत चाहे जितनी खराब हो, कल्पना का इस पर ज्यादा असर नहीं होता। वो कल्पना ही है, जो हक़ीक़त की पूरी तस्वीर को बदलने की कुव्वत रखती है। इसलिए हमें उस 'कल्पना' के साथ ज़रूर खड़े होना चाहिए, जो देश और समाज की बेहतरी के लिए हो। हम यूपी की पुलिस ऑफिसर बरेली की एसपी ट्रैफिक कल्पना सक्सेना के उस हौसले को सलाम करते हैं, जिसके तहत उन्होंने अपने ही मातहतों के भ्रष्टाचार को खत्म करने का बीड़ा उठाया। ये दीगर है कि अपनी इस मुहिम में उनकी राह में कुछ कांटे आए, और उन्हें अपने भ्रष्ट मातहतों के हमले का शिकार होना पड़ा। ट्रकों से वसूली करते रंगे हाथ पकड़े जाने पर उनके ही सिपाहियों ने गाड़ी चढ़ाकर उनकी जान लेने की कोशिश की, लेकिन ऊपर वाले का शुक्र है कि वो इस हमले के बावजूद पूरी तरह कुशल से हैं। हौसले और मजबूत इरादों के साथ फिर से फर्ज अदायगी के लिए तैयार हैं। सेहत लाभ कर हॉस्पिटल से घर लौटीं कल्पना से बातचीत में उनके मजबूत इरादों की झलक भी मिली।
ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो खतरों की परवाह किए बगैर अपने फर्ज़ पर डंटे होते हैं। अंधेरों की ताकत की परवाह किए मशाल की तरह जल कर समाज को रोशन कर रहे इन लोगों के साथ पूरे समाज को खड़े होना चाहिए। उनकी हौसला अफजाई करनी चाहिए। सूरत बदलने की हसरत रखने वाले लोगों की राह ऐसे ही लोग रोशन करते हैं। लूट, भ्रष्टाचार और दलाली वाले माहौल के बीच हमारे समाज में इस तरह की कोशिशों के दीये विरले ही जलते हैं, और अंधेरे के खिलाफ अपना योगदान देते हैं। देश के हर ईमानदार नागरिक का फर्ज है कि ऐसी कोशिशों की सराहना की जाए। कल्पना की पहल को दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां आवाज़ देती हुईं नज़र आती हैं।

आग में फेंको हमें या ज़हर दे दो हमें
हम तो तैयार हैं, सब इम्तिहानों के लिए
जब से हमने पंख खोले हैं उड़ाने के लिए
हम चुनौती बन गए हैं आसमानों के लिए

अमर आनंद