बुधवार, 12 नवंबर 2008

अंतिम उत्कर्ष

भूलकर सारे ग़म
देखता हूं जब आसमां की ओर
आसमां के सितारों को
देखता हूं जब उनकी चमक
तो मुझमें भी ख्वाहिश होती है चमकने की
मगर ये कैसे मुमकिन है
क्योंकि उलटे हालात मुझे बिखराना चाहते हैं
फिर भी मैं बढ़ रहा हूं आगे की ओर
लड़ रहा हूं उन हालात से
और कर रहा हूं कठिन संघर्ष
क्योंकि एक दिन पाना है मुझे
अंतिम उत्कर्ष

अमर आनंद

1 टिप्पणियाँ:

यहां 5 मई 2010 को 4:43 am बजे, Blogger Sanjeev ने कहा…

bahut sahi likha hai sir...isme mujhe apni parchhain dikhti hai!!!

 

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