अंतिम उत्कर्ष
भूलकर सारे ग़म
देखता हूं जब आसमां की ओर
आसमां के सितारों को
देखता हूं जब उनकी चमक
तो मुझमें भी ख्वाहिश होती है चमकने की
मगर ये कैसे मुमकिन है
क्योंकि उलटे हालात मुझे बिखराना चाहते हैं
फिर भी मैं बढ़ रहा हूं आगे की ओर
लड़ रहा हूं उन हालात से
और कर रहा हूं कठिन संघर्ष
क्योंकि एक दिन पाना है मुझे
अंतिम उत्कर्ष
अमर आनंद
1 टिप्पणियाँ:
bahut sahi likha hai sir...isme mujhe apni parchhain dikhti hai!!!
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