शनिवार, 22 नवंबर 2008

घायल ये देश है

धर्म अधिकारियों का झूठा उपदेश है,
लुटेरों ने पाया अब साधू का वेश है।

प्रेम अब नहीं सिर्फ घृणा और द्वेष है,
क्षमा का नाम नहीं, क्रोध का आवेश है।

नेताओं की बातों में वादों का समावेश है,
राजनीतिक अदाओं में तुष्टीकरण विशेष है।

राष्ट्रीय स्वाभिमान अब बिल्कुल ही लेश है,
विदेशी कंपनियों का जबरन प्रवेश है।

आतंकित चीत्कार से पूर्ण ये परिवेश है,
वक्त की मार से घायल ये देश है।

अमर आनंद

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ