जब हारी थी दहशत, और जीता था हौसला
मुंबई हमलों ने देश के सीने पर दे दिए थे जख्म। ऐसे गहरे जख्म जो नासूर बन सकते थे, लेकिन हमने उन जख्मों को गहरा नहीं होने दिया। पूरे देश का हौसला मजबूत खड़ा था उन नापाक मंसूबों के आगे, जिनका मकसद हमें कमज़ोर करना था। हमें घाव देना था, लेकिन हमने उनके इरादों को परवान नहीं चढ़ने दिया। कुछ पल के लिए सीने में ग़म लिए हम लड़खड़ाते हुए ज़रूर नज़र आए, लेकिन हमने हिम्मत जुटाई और उसका जवाब भी दिया। हमारे जवानों ने डटकर उस हमले का मुकाबला किया।
साल भर पहले 26 नवंबर 2008 की रात मुंबई पर सबसे भयानक आतंकी हमले हुए थे। दस आतंकी समंदर के रास्ते ‘गेटवे ऑफ़ इंडिया से होते हुए मुंबई में दाखिल हुए औऱ कुछ ही घंटों में उन्होंने इस मायावी शहर को अपने कब्जे में ले लिया। मुंबई की शान ताज होटल में घुसे कुछ आतंकियों ने लोगों को दनादन गोली मारना शुरू कर दिया। तो कुछ आतंकियों ने अपना अड्डा ओबेरॉय और ट्राइडेंट होटल को बनाया। जहां देखते ही देखते कई लोगों को इन आतंकियों ने मौत के घाट उतर दिया। पूरी दुनिया में मुंबई पर आतंकी कब्जे की ख़बर जंगल में आग की तरह फैल गई। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए आतंकवादियों की हर गतिविधि की ख़बर सुर्खियों में बनी थी।
सुरक्षाबल के जवान अपनी शहादत देते हुए मुल्क से किए गए वादे को निभा रहे थे। तो कहीं आम अवाम भी आतंकियों से भिड़ रही थी। मुठ्ठीभर आतंकियों की दहशत से कुछ ही घंटो में बेतहाशा भागता हुआ मुंबई शहर मानो रुक गया हो। हर तरफ थी गोलियों की आवाज़। सड़कों पर हर तरफ सुरक्षा एजेंसियों के मुस्तैद जवान यानी ऩज़ारा कुल मिलाकर ऐसा था कि आतंकियों के ख़िलाफ़ ऐलान-ए-जंग कर दिया गया हो। हर पल बीतने के साथ आतंकियों ने जो दहशत कायम की थी उसमें गिरावट हो रही थी जिसे आतंकी भी बखूबी जान रहे थे। लेकिन आतंकियों की हालत ऐसी थी, कि इधर कुआं, उधर खाई। उनके लिए हर तरफ था मौत का साया। अपने आकाओं के ज़रिए पल-पल की ख़बर उन तक पहुंच रही थी। आतंकी समझ चुके थे कि मौत उनके कितने करीब है। इसी खुन्नस में आतंकी बंधक बनाए लोगों पर अपनी खींज उतार रहे थे। लेकिन आखिरकार हमारे जवानों ने उन्हें धूल चटा दिया। एक ज़िंदा आतंकी आमिर कसाब पकड़ा गया, बाकी नौ मार गिराए गए। कसाब पर अब भी मुकदमा जारी है। मुंबई पुलिस उससे सच उगलवाने में लगी हुई है।
हालांकि पड़ोसी देश पाकिस्तान का रवैया इस मामले से जुड़े लोगों को पनाह देने जैसा रहा। पाकिस्तान की अदालत में हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज को सबूतों के अभाव बरी कर दिया, लेकिन हमने फिर भी हार नहीं मानी है, और हमारी कोशिश को अंतरराष्ट्रीय दबाव डालकर हमलों के आरोपियों को साज़िश रचने वालों को सज़ा दिलवाई जाए।
ज़रा याद करो कुर्बानी
मुंबई हमलों के दौरान देश के लिए आगे बढ़कर सीने पर गोलियां खाने वाले उन शहीदों को हम भला कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने इस मुश्किल घड़ी में अपनी जान पर खेलकर देश की आबरू की रक्षा की। उन आतंकियों को सबक सिखाकर ही दम लिया, जो हमारी धरती पर बर्बादी के अपने मंसूबे को अंजाम देने में लगे हुए थे। इस सबमें सबसे पहले नाम आता है तत्तकालीन एटीएस चीफ हेमंत करकरे का। करकरे को जैसे ही सूचना मिली कि छत्रपति शिवाजी स्टेशन पर हमला हुआ है वो अपने साथियों के साथ आतंकियों से लोहा लेने पहुंच गए। वहां मुठभेड़ में उन्हें गोलियां लगीं और अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। इस हमले में करकरे समेत कुल चौदह पुलिस अधिकारी और कर्मचारी शहीद हो गए थे।
अमर आनंद
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