मंगलवार, 10 मार्च 2009

होली मुबारक़

उमंग के रंग की उम्मीद बरकरार हो।
ग़म के दौर से निकलने को वतन तैयार हो।
हाथ दें, साथ दें, हौसला बढ़ाएं,
ऐसा समां बनाएं कि हर तरफ 'जय'कार हो।

अमर आनंद

1 टिप्पणियाँ:

यहां 15 अप्रैल 2009 को 9:12 pm बजे, Anonymous बेनामी ने कहा…

सुन्दर ..अमर जी .. आप निरंतरता बनाए रखिये कविता लिखने में ..इतना अंतराल ठीक नहीं ...

शब्द पुष्टिकरण को हटा दीजिये और blog followers का विजेट लगा दीजिये

 

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