सोमवार, 8 दिसंबर 2008

जीत के अर्थ

जाग रहा है जन-जन
उबल रहा है हर मन

सियासत के सूरमाओं
जान लो अब ये बात

जनता के सामने आपकी
कुछ भी नहीं औकात

मुद्दों, मसलों पर भरमाना
अब लद गया इसका जमाना

दिल्ली, एमपी, छत्तीसगढ़
मिजोरम या फिर राजस्थान

काम ही आया सबके काम
चूक गए मुद्दे तमाम

करो विकास के काम
जनादेश का है यही अर्थ

पकड़ो जनकल्याण की राह
बाकी सबकुछ है व्यर्थ

अमर आनंद

3 टिप्पणियाँ:

यहां 15 दिसंबर 2008 को 12:40 am बजे, Blogger धीरेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपने जो लिखा वो काफी उत्साहवर्धक और मन में जोश भरने वाला है .

 
यहां 17 दिसंबर 2008 को 11:24 pm बजे, Blogger राजीव करूणानिधि ने कहा…

नेताओं को आइना दिखाती हुई कविता है, मज़ा आगया. वैसे हम और आप कुछ भी कर लें ये सुधरने वाले नहीं हैं. लोकतंत्र, जनादेश और किसका जनादेश इसके मायने फिर से तलाशने होंगे. बहुत हद तक हमें भी बदलने की जरूरत है. बढ़िया है. धन्यवाद

 
यहां 25 दिसंबर 2008 को 5:53 am बजे, Anonymous बेनामी ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति है अमर जी

 

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