रविवार, 30 नवंबर 2008

आखिर कब तक ऐसा होगा?

वतन को आतंक की ललकार,
आखिर कब तक झुकेगी सरकार।

कब तक लहू वीरों का,
धरती रंगता रह जाएगा।

मासूमों का खून कब तक,
यूं ही बहता रह जाएगा।

क्या बेबस और लाचार जनता
अब और खौफ झेल पाएगी।

गूंजती रहेगी आवाज यूं ही,
लोगों के चीत्कार की।

बढ़ती रहेगी फौज और भी,
पीड़ित, बेबस और लाचार की।

क्या नाकामी नेताओं की
यू हीं बढ़ती रह जाएगी।

और संख्या धमाकों की,
यूं ही बढ़ती रह जाएगी।

देश के दुश्मनों का हौसला
यूं ही बढ़ता रह जाएगा।

और पौरूष जनता का
यूं ही सोता रह जाएगा?

अमर आनंद

4 टिप्पणियाँ:

यहां 3 दिसंबर 2008 को 11:38 pm बजे, Blogger Meenakshi Kandwal ने कहा…

यही तो सबसे बड़ी दिक्कत है कि एक हमला होने के बाद कुछ वक्त तो उसकी आग सबके दिलों में जलती रहती है। लेकिन कुछ वक्त बाद वो आग बुझ जाती है और सिर्फ उन वाक़यों की राख बाकी रह जाती है।
लेकिन इस बार गुस्से की ये आग बिल्कुल ठंडी नहीं पड़नी चाहिए और कम से कम घटिया राजनीति करने वालों को तो इसमें जल ही जाना चाहिए।

 
यहां 3 दिसंबर 2008 को 11:49 pm बजे, Blogger राजीव करूणानिधि ने कहा…

फिर मूरत से बाहर आकर चारो ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला,
तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो
जीने वाले को मरने की आसानी दे मौला.

मौला हमारे साथ हैं, ताकत हमारे पास है, देश के कर्णधार ये नेता नहीं किसान, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकार और कॉर्पोरेट जगत के बड़े योद्धा हैं. हम जैसे लोगों को ही तय करना है कि कौन हमारा अगुआ बनेगा, कौन विकास की राह बनाएगा. बस जरूरत है राजनैतिक दलदल में उतरकर इसमें खाद और मिट्टी डाल कर उपजाऊ ज़मीं बनाने की.

 
यहां 7 दिसंबर 2008 को 12:15 am बजे, Anonymous बेनामी ने कहा…

ojaswee kavitaa hai amar ji..

 
यहां 15 जनवरी 2009 को 8:23 am बजे, Blogger Jitendra Dave ने कहा…

dhaar-daar likhaa hai bandhu. ab sarkaar ki kamar hi nahi hai toh jaahir hai vo jhuki hui hi hogi. aapki lekhni ki tejasvi dhaar ko naman. kaash desh jag jaayen aur votebank le lobhi netaaon se nijaat mile.

 

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