शनिवार, 17 जनवरी 2009

धर्मेंद्र, गोविंदा मत बनना 'मुन्ना'

मुन्नाभाई रीयल लाइफ में भी गांधीगीरी दिखाना चाहते हैं। पिता की विरासत को लेकर सियासत में आना चाहते हैं, संसद पहुंचना चाहते हैं। और वो इसका ऐलान भी कर चुके हैं। तो बुरा क्या है भाई ? अब इस ऐलान पर सियासत क्यों? पार्टी के नाम पर सियासत क्यों? बहन प्रिया दत्त का अफसोस भी बेमानी है और उनकी पार्टी कांग्रेस का विरोध या ऐतराज भी। माना कि संजय दत्त का अतीत थोड़ा धूमिल रहा है आर्म्स एक्ट में उन पर केस चला है, लेकिन वो अपराधी नहीं है। किसी का नुकसान नहीं करते। जाने-अनजाने में उन्होंने जो गलतियां की हैं। उन्हें सुधारने की इच्छाशक्ति भी उनमें हैं। यकीन मानिए पिता सुनील दत्त की तरह ही संजय दत्त भी देश की सेवा करना चाहते हैं। क्या फर्क पड़ता है कि इसके लिए उन्हें कांग्रेस की बजाय समाजवादी पार्टी को चुना। आप उनके साध्य पर जाइए साधन पर नहीं। बस मुन्ना को ये ध्यान रखना पड़ेगा,कि वो धर्मेंद्र और गोविंदा न बनें। अपनी हील-हुज्जत न कराए। सियासत करें तो आम लोगों की सेवा के लिए। नेताओं की तरह केवल वादें न करें। हमें विश्वास हैं मुन्ना ऐसा नही करेंगे। वो अपने पिता का नाम करेंगे और लखनऊ वासियों के लिए काम करेंगे। वो ऐसा बनेंगे कि लखनऊ ही नहीं पूरा मुल्क फिल्मों के साथ-साथ उनकी सियासत पर भी नाज़ कर सके। शुभकामनाएं। आपके प्रयासों को जनता अपनी मान्यता प्रदान करे।

3 टिप्पणियाँ:

यहां 23 जनवरी 2009 को 10:03 pm बजे, Blogger kaushal ने कहा…

आसां नहीं ये डगर
फिल्मी नहीं ये सफर
फैसले दिल से यहां होते नहीं
रि टेक का मौका मिलता नहीं
जुबान फिसली तो करियर फिसला
वादे भूले तो जनता भूले जाएगी।

 
यहां 31 जनवरी 2009 को 10:43 am बजे, Blogger संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

 
यहां 13 फ़रवरी 2009 को 8:09 am बजे, Anonymous बेनामी ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

 

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