शनिवार, 4 अप्रैल 2009

मौका है, बदल डालो दोस्तो!

सियासत की बिसात पर कई मोहरे बिछे हुए हैं। रोज़ नई चालें चली जा रही हैं, लुभाने के लिए रिझाने के लिए। ताकि खींच सकें ज्यादा से ज्यादा वोट अपनी तरफ। जनता देख रही है खामोशी से यह तमाशा। उसे भी है नुमाइंदों की तलाश। वैसे नुमाइंदे, जो कर सकें पूरी उसकी आस। उम्मीदों पर खरे हों, ऐसे करारे उम्मीदवार चाहिए पब्लिक को। पर ज़रूरत इस बात की है कि सही लोग चुने जाएं। ऐसे लोग जो वतनपरस्त हों, मानवीय हों और सही मायने में इंसानियत की राह के राही हों। आप कहेंगे कि राजनीति में भला ऐसे लोग हैं कहां, इन्हें तो चिराग लेकर ढूंढना होगा। हां ये सही है कुछ हद तक। लेकिन विकल्प हमारे-आपके बीच से ही निकलेंगे। लेकिन तभी, जब वोट दिलचस्पी से डालेंगे, दबाव से नहीं। देश को बदलने का एक माकूल मौका हमारे सामने हैं मित्रो। देखना ये है कि कोई हत्यारा, कोई बलात्कारी, या फिर देश से दगा करने वाला कोई दुश्मन, चाहे किसी भी रूप में हो न पहुंचने दें, देश की सबसे बड़ी पंचायत में। इसलिए ज़रूरी है कि वोट ज़रूर डालना दोस्तो। वतन के वास्ते। बदलाव के वास्ते। देश की मिट्टी के लिए आपकी एक ज़िम्मेदारी है। ज़िम्मेदारी के उस एहसास के वास्ते। वोट किसको देना है,क्यों देना है, कौन इसका सही हकदार है। फैसला आपको करना है। आपसे बेहतर फैसला भला कौन कर सकता है। उनको सबक दीजिए,जिनका सबब चुनाव लड़कर जीतना तो है, लेकिन यकीन मानिए उनकी जीत देश की समाज की और खुद आपकी हार साबित होगी। एक काबिल नेता, एक काबिल नुमाइंदा, एक असरदार साथी चुनिए, जो देश की माटी के काम आए। दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को जेहन में रखते हुए वोट डालना है।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए।

अमर आनंद

2 टिप्पणियाँ:

यहां 4 अप्रैल 2009 को 8:17 pm बजे, Blogger कुछ कहना है... ने कहा…

बेहतरीन लेख है सर। आपने सही कहा कि सियासत की बिसात पर कई मोहरे बिछे हैं। ऐसे मोहरे जिनके हाथों में देश का भविष्य बंधकर रह गया है। आज की राजनीति पहले जैसी राजनीति नहीं रही है। इसके लिए कोई पार्टी नहीं बल्कि खुद जनता जिम्मेदार है। वह जनता जो इन नुमाइंदों को चुनकर हमारे देश की बागडोर इनके हाथों में थमाती है। ये माहौल देश के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता है। देश का भविष्य स्वयं जनता के हाथ में है। और सही कहा है आपने की "मौका है, बदल डालो दोस्तो"। क्योंकि इस बदलाव के लिए, देश की बागडोर सही हाथों में लाने के लिए एक सही फैसले भर की देर है। आशा करती हूं कि इन चुनावों में जनता अपने मत का सही दिशा में प्रयोग करेगी।

पारुल सिंह

 
यहां 4 अप्रैल 2009 को 8:26 pm बजे, Blogger Anil Kumar ने कहा…

अब भारत के उत्थान को एक विचार नहीं बल्कि एक मिशन बनाना होगा। लोकतंत्र और विकास के मुद्दों पर लिखने के लिये यहाँ चटका लगायें! धन्यवाद!

 

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