हम फिर भी अड़े हुए हैं
कुछ इस कदर हम बड़े हुए हैं.
सवालों की तरह खड़े हुए हैं।
मेरे नक्श पर ज़ख़्म के अक्स देखना,
बेरहम जमाने से हम बहुत लड़े हुए हैं।
न हुई कभी हसरतें हावी हम पर,
अरमानों के भी कई धड़े हुए हैं।
करीने से सजाने की फिक्र में न जाने
मेरी ज़िंदगी के कितने टुकड़े हुए हैं।
मुझमें और खुशियों में रहा फासला हर दम।
ग़म हमेशा मेरे हिस्से में पड़े हुए है।
उखड़ी सांसों से दौड़ते रहे मंज़िल की तरफ
रास्ते में न जाने कितने कांटे बिखरे हुए हैं।
हमें हटाने हैं वो सारे बदमिजाज़ पत्थर
जो रुकावट बनकर मेरी राह में पड़े हुए है।
अभी बाकी है उखाड़ना इस ज़मीन से
न जाने कब, कितने मुर्दे गड़े हुए हैं।
मुश्किल हैं मंज़िल, पर हौसला है कायम
मेरे ख्वाबों में कोशिशों के मोती जड़े हुए हैं।
दुबले होते हैं ये सोचकर मेरे दुश्मन
हालात उलटे हैं, हम फिर भी अड़े हुए हैं।
अमर आनंद
6 टिप्पणियाँ:
अमर जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं
विष्णु
अमर जी
लगे हुए हैं बहुत से लोग आपके पीछे
लेकिन आप हैं कि अब तक अड़े हुए हैं
दर्द,जोश,मुश्किल और हिम्मत का समिश्रण…..लाजबाव...
संतोष पाठक
इसके आगे मैं लिखता हूं...
दिल में जख्म लिये,इंसान सोने के लिए अड़ा है,
नींद आती नहीं फिर भी किसी और के पीछे पड़ा है.
रकीब के मुहल्लें में तलवारबाजी करने पर भिड़ा है,
जो तेरा अपना है वो कहीं और यूं ही बेकार पड़ा है.
बड़बड़ाती जिंदगी बांस की फुनगी पर लटका पड़ा है,
नदी,तालाब नहीं अंधेरे कुएं में भी गिरने के लिए तैयार खड़ा है.
.................गौरी शंकर.......
आपके इस सफर में हम भी खड़े मिलेंगे
वक्त के साथ हर जख्म भरे मिलेंगे
गगन छूने की तमन्ना है आपकी , इसी हौसले पर अड़े रहे है..
मंजिल मिलेगी जल्द ही आपको शिकबे- गिले सब हरे मिलेंगे
मंजिल पर आते ही आपके दुशमनों के मुँह जले मिलेंगे
सच्ची दुआ यही है मेरी पर मोड़ पर हम खड़े मिलेंगे
आपका -ब्रजेश गौतम
Amari Ji,
Aap aisey hi ADEY rahiye, aapkey saharey hum bhi Adey rahenge. Keep Up The Good Fight We Are Always With You!
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