समर बाक़ी है
डगर बाक़ी है, सफ़र बाक़ी है,
अमर का अभी, समर बाक़ी है।
दौड़ जारी है, मंज़िल की खातिर,
शिद्दत का अभी असर बाक़ी है।
राहों में कांटों के सिलसिले हैं, रहेंगे,
फूलों का अभी मयस्सर बाक़ी है।
वक़्त लेता है, तो लेता रहे इम्तिहान
मजबूत हैं हम, हौसला ए जिगर बाक़ी है
बादलों में है अभी, उम्मीदों का चांद,
उस चांद पर मेरी नज़र बाक़ी है।
जारी है मेहनत, भारी है सब्र,
नतीज़ों का आना, मगर बाक़ी है।
बस इंतज़ार है, लम्हा ए ख़ास का,
फासला मेरा उससे, पर बाक़ी है।
अमर आनंद
1 टिप्पणियाँ:
Awesome stuff! You are quite a prolific writer Amar ji.
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