अब और नहीं...!
मेरी खामोशी को मत समझो,ये मेरी रज़ा होगी,
मेरे लिए तो ये ज़िंदगी भर की सज़ा होगी।
मिलते नहीं एहसास जिनसे,उनसे क्या मिलना,
पत्थर पर कहां मुमकिन है फूल का खिलना।
चाहत की बात पर मुझे मत देना कोई दलील,
चाहूं मैं तुमको, मत करना ऐसी कोई अपील
छोड़ दो एक दूसरे को अब यादों के हवाले
क्यों न अब हम जुदा अपनी राह बना लें।
दिल की इस दिल्लगी को यहीं विराम दे दो
रिश्तों को अपने सिर्फ दोस्ती का नाम दे दो।
मत बनाओ जीवनसाथी, हमें साथी ही रहने दो
यही एक धारा, बस अब अपने बीच बहने दो
चलो हम तोड़ दें, अब मुलाकातों का सिलसिला
याद रखेंगे सिर्फ उसी को जो अब तक है मिला।
हां...मान लो अब तुम कि यही दस्तूर है
ख्वाब हमारा-तुम्हारा हक़ीक़त से दूर है।
अमर आनंद
2 टिप्पणियाँ:
Very nice write up sir...I read it twice and is willing to read even more...
Aditya Nagar
bahut achha
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