आखिर कब तक ऐसा होगा?
वतन को आतंक की ललकार,
आखिर कब तक झुकेगी सरकार।
कब तक लहू वीरों का,
धरती रंगता रह जाएगा।
मासूमों का खून कब तक,
यूं ही बहता रह जाएगा।
क्या बेबस और लाचार जनता
अब और खौफ झेल पाएगी।
गूंजती रहेगी आवाज यूं ही,
लोगों के चीत्कार की।
बढ़ती रहेगी फौज और भी,
पीड़ित, बेबस और लाचार की।
क्या नाकामी नेताओं की
यू हीं बढ़ती रह जाएगी।
और संख्या धमाकों की,
यूं ही बढ़ती रह जाएगी।
देश के दुश्मनों का हौसला
यूं ही बढ़ता रह जाएगा।
और पौरूष जनता का
यूं ही सोता रह जाएगा?
अमर आनंद